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बउआ देवी के पद्मश्री से याद आई मधुबनी पेंटिंग्स की

 मैं बचपन से ही अपनी मां को कभी घर के आंगन में, तो कभी कपड़ों पर तस्वीरें बनाते देखता था और इन तस्वीरों के बने बिना तो हमारे यहां कोई त्योहार पूरा ही नहीं होता है. जब बड़े हुए, तब जाकर पता चला कि दुनिया इन तस्वीरों को मधुबनी पेंटिंग के नाम से जानती है और ये पेंटिंग पूरी दुनिया में फेमस हैं. इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर मधुबनी पेंटिंग के चर्चित कलाकार बउआ देवी को पद्मश्री दिया गया है. तो चलिए, बताते हैं आपको कि क्या है मधुबनी पेंटिंग.

मधुबनी पेंटिंग मिथिला की एक फोक पेंटिंग है, जो मिथिला के नेपाल और बिहार के क्षेत्र में बनाई जाती है. इस पेंटिंग में मिथिलांचल की संस्कृति को दिखाया जाता है. मधुबनी पेंटिंग को मधुबनी आर्ट और मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है. इस पेंटिंग का नाम ही मधुबनी पेंटिंग है. मतलब की मधुबनी की पेंटिंग. मधुबनी बिहार में इंडिया और नेपाल के बॉर्डर के पास का एक जिला है. बताते हैं कि ये शहर रामायण के समय भी था. तब इसका नाम मधु के वन पर पड़ा था. इसी वन में राम और सीता ने पहली बार एक-दूसरे को देखा था. एक और इंट्रेस्टिंग फैक्ट ये है कि SBI के डेबिट कार्ड के कवर पर जो पेंटिंग आपको दिखती है, वो असल में मधुबनी पेंटिंग ही है.

कैसे हुई शुरुआत

मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत रामायण के दौर से ही हुई थी. तब मिथिला के राजा जनक थे. राम के शिव-धनुष तोड़ने के बाद जनक की बेटी सीता की शादी राम से तय हुई थी. राम के पिता अयोध्या के राजा थे, इसलिए मिथिला में अयोध्या से बारात आने वाली थी. जनक ने सोचा कि एक ही बिटिया है. शादी ऐसी होनी चाहिए कि जमाना याद रखे. तो उन्होंने जनता को आदेश दिया कि सब लोग अपने घरों की दीवारों और आंगनों पर पेंटिंग बनाएं, जिसमें अपनी संस्कृति की झलक हो. इससे अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चलेगा.

मधुबनी पेंटिंग मिथिलांचल में, खासकर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और नेपाल के जनकपुर, सिरहा, धनुषा जैसे जिलों की मेन फोक पेंटिंग है. शुरुआत में ये पेंटिंग्स घर के आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थीं. फिर धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर उतर आईं. मिथिला की औरतों की शुरू की गईं इन फोक पेंटिंग्स को पुरुषों ने भी अपना लिया. शुरू में ये पेंटिंग्स मिट्टी से लीपी झोपड़ियों में देखने को मिलती थीं, लेकिन अब इन्हें कपड़े या पेपर के कैनवस पर बनाया जाता है. इन पेंटिंग्स में खासतौर पर देवी-देवताओं, लोगों की आम जिंदगी और नेचर से जुड़ी पेंटिंग्स होती हैं. इनमें आपको सूरज, चंद्रमा, पनघट, तुलसी और शादी जैसे नजारे मिलेंगे.


मधुबनी पेंटिंग्स कैसे बनाई जाती हैं


मधुबनी पेंटिंग्स दो तरह की होती हैं. एक भित्ति-पेंटिंग जो घर की दीवारों (मैथिली में दीवारों को भित्ति भी कहते हैं) पर बनाई जाती है और दूसरी अरिपन, जो घर के आंगन में बनाई जाती है. इन पेंटिंग्स को माचिस की तीली और बांस की कलम से बनाया जाता है. चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला. चटख रंगों के लिए अलग-अलग रंगों के फूलों और उनकी पत्तियों को तोड़कर उन्हें पीसा जाता है. फिर उन्हें बबूल के पेड़ की गोंद और दूध के साथ घोला जाता है.

पेंटिंग्स में कुछ हल्के रंग भी यूज होते हैं, जैसे पीला, गुलाबी और नींबू रंग. खास बात ये है कि ये रंग भी हल्दी, केले के पत्ते और गाय के गोबर जैसी चीजों से घर में ही बनाए जाते हैं. लाल रंग के लिए पीपल की छाल यूज की जाती है. आमतौर पर ये पेंटिंग्स घर में पूजाघर, कोहबर घर (विवाह के बाद का पति-पत्नी का कमरा) और किसी उत्सव पर घर की दीवार पर बनाई जाती हैं. हालांकि, अब इंटरनेशनल मार्केट में इसकी डिमांड देखते हुए कलाकार आर्टीफीशियल पेंट्स भी यूज करने लगे हैं और लेटेस्ट कैनवस पर बनाने लगे हैं.


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